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Saturday, September 26, 2009

यह दुनियां है स्ववित्तपोषित शिक्षकों की .....!

आईये रूबरू कराता हूं एक ऐसी दुनियां से जिसमें रहते हैं ऐसे लोग जिनके योगदान को आज की शिक्षा व्यवस्था में कम कर के नहीं आंका जा सकता । यह दुनियां है स्ववित्तपोषित शिक्षकों की । चाहे वह इण्टरमीडिएट लेवल के हों या उच्च शिक्षा के । कभी उनका चेहरा खिला हुआ नहीं दिखता । कारण आप समझ सकते हैं ।

इनके प्रति हो रहे भेदभाव को लेकर जो भी कदम उठाया जा रहा है वह कहीं से भी उनके भविष्य के प्रति आश्वस्त होता नहीं प्रतीत होता । वह अपने योग्यता को ले कर सशंकित हो जाते हैं कभी कभी । क्या इनकी नियुक्ति केवल प्रवक्ता कहे जाने के लिये है । इन्हें समाज में देखा भी जाय तो केवल इस नजरिये से कि अरे ! ये तो एस. एफ. वाले हैं । साथ ही शिक्षक समाज में भी उचित स्थान प्राप्त नहीं होता ।

कभी हमारी सरकार यह सोचती है कि यह लोग किस तरह की जिन्दगी जीते हैं ? कायदन इन्हें जो तनख्वाह दी जाती है उससे अधिक उच्च शिक्षा में फेलोशिप मिलती है । सच है कि शिक्षा व्यवस्था के लिये सरकार का बड़ा लम्बा - चौड़ा बजट पास होता है । हर दस वर्ष में वेतन आयोग नये वेतन की संस्तुतियां जारी करता है । बढ़ी हुयी धनराशि का बोझ सरकार को उठाना पड़ता है । जिससे उबरने में उसे बहुत जुगत करनी पड़ती है । लगता है शायद इसी लिए सरकार इधर ध्यान नहीं दे पाती ।

यह सब देखकर स्ववित्तपोषित शिक्षकों के मन में भी कुछ ही बढ़ी हुई सेलरी के प्रति मोह जागना स्वाभाविक है और लग जाते हैं इस प्रयास में कि हमें भी बढ़ी हुई सेलरी प्राप्त हो । किस प्रकार से अपने प्रबन्धन से बात की जाय यह भी रास्ता ठीक तरह से नहीं सूझता । क्योंकि अतीत में प्राप्त निराशा को लेकर भिन्न- भिन्न शंकायें उत्पन्न होना शुरू हो जाती हैं । ज्यादा प्रयास भी किया तो वह नौकरी जो है उससे भी हांथ धोना पड़ सकता है । साथ ही आप पर अनुशासनिक कार्यवाही करके संस्थान से बाहर निकाल दिया जाता है । क्यों कि नियोक्ता कुछ भी कर सकने में सक्षम है!

सारी योग्यता होने के बाद भी यह अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाते यह । उसके पीछे का भाव जगजाहिर है । एक तो तनख्वाह कम..! दूसरी ओर जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को प्राप्त करने में मंहगाई की मार । इनका खाली समय सार्थक उपयोग में नही जा पाता कि ये कुछ और बेहतर भी सोच सकें आने वाले कल को बेहतर बनाने के लिए ।

सरकार निजी संस्थानो को धड़ाधड़ मान्यता दे रही है पर क्या इन संस्थानो में नियुक्त शिक्षको के प्रति भी ध्यान है , इनका भी भविष्य उज्ज्वल हो सकेगा । न मिले इन्हें सरकारी शिक्षको के समान वेतन पर कोई ऐसा मध्यमार्ग निकले कि ये सन्तुष्ट भी हो सकें और अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त हो सकें...!

6 comments:

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    दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं।
    ( Treasurer-S. T. )

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  2. उचित चिंतन; सार्थक चिंता

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  3. आपकी बात सही है हेमंत भाई लेकिन अगर सरकार इनको भी सरकारी मान्यता जैसा वेतन देने लगे तो आपको तो पता ही है उत्त्तर प्रदेश में  उस समय  हर घर में लोग स्कूल ही खोल लेगे .
    हां ये आपने सही कहा है कि इनके ऊपर भी ध्यान देना चाहिए लेकिन उससे पहले हमें शिक्षा संस्थानों के ऊपर भी ध्यान देना चाहिए कि जो भी संस्थान खुऊल रहे है क्या वे हमारी मानक के अनुरूप है .
    अगर सारी सुविधाए उपलब्ध है तब तो वहा के शिक्षको के ऊपर ध्यान देना आवश्यक है , आप तो जानते ही है हमारे यहाँ किस तरह के प्रबंधक होते है स्कूलों के कोई हत्यारोपित है तो किसी के पर गबन का आरोप है ऐसे समय में सरकार ना तो उनके ऊपर ध्यान देती है और ना ही उनके द्वारा रखे गए शिक्षको पर .

    नमस्कार

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  4. S.F. अच्छा शब्द दे दिया आपने ।
    अध्यापन की शैली, कार्यकुशलता आदि में इन शिक्षकों की जवाबदेही भले ही तय कर ली जानी चाहिये, पर इनकी अपेक्षित सुविधाओं का खयाल तो प्रबंधन और सरकार दोनों स्तरों पर होना चाहिये । आभार ।

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  5. सच बस इक ये ही चिन्तन सरकारें कर लें तो देश नम्बर वन पर होगा

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  6. इस टिप्पणी के माध्यम से, सहर्ष यह सूचना दी जा रही है कि आपके ब्लॉग की इस पोस्ट को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।

    अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।

    बधाई।

    बी एस पाबला

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