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Saturday, September 26, 2009

यह दुनियां है स्ववित्तपोषित शिक्षकों की .....!

आईये रूबरू कराता हूं एक ऐसी दुनियां से जिसमें रहते हैं ऐसे लोग जिनके योगदान को आज की शिक्षा व्यवस्था में कम कर के नहीं आंका जा सकता । यह दुनियां है स्ववित्तपोषित शिक्षकों की । चाहे वह इण्टरमीडिएट लेवल के हों या उच्च शिक्षा के । कभी उनका चेहरा खिला हुआ नहीं दिखता । कारण आप समझ सकते हैं ।

इनके प्रति हो रहे भेदभाव को लेकर जो भी कदम उठाया जा रहा है वह कहीं से भी उनके भविष्य के प्रति आश्वस्त होता नहीं प्रतीत होता । वह अपने योग्यता को ले कर सशंकित हो जाते हैं कभी कभी । क्या इनकी नियुक्ति केवल प्रवक्ता कहे जाने के लिये है । इन्हें समाज में देखा भी जाय तो केवल इस नजरिये से कि अरे ! ये तो एस. एफ. वाले हैं । साथ ही शिक्षक समाज में भी उचित स्थान प्राप्त नहीं होता ।

कभी हमारी सरकार यह सोचती है कि यह लोग किस तरह की जिन्दगी जीते हैं ? कायदन इन्हें जो तनख्वाह दी जाती है उससे अधिक उच्च शिक्षा में फेलोशिप मिलती है । सच है कि शिक्षा व्यवस्था के लिये सरकार का बड़ा लम्बा - चौड़ा बजट पास होता है । हर दस वर्ष में वेतन आयोग नये वेतन की संस्तुतियां जारी करता है । बढ़ी हुयी धनराशि का बोझ सरकार को उठाना पड़ता है । जिससे उबरने में उसे बहुत जुगत करनी पड़ती है । लगता है शायद इसी लिए सरकार इधर ध्यान नहीं दे पाती ।

यह सब देखकर स्ववित्तपोषित शिक्षकों के मन में भी कुछ ही बढ़ी हुई सेलरी के प्रति मोह जागना स्वाभाविक है और लग जाते हैं इस प्रयास में कि हमें भी बढ़ी हुई सेलरी प्राप्त हो । किस प्रकार से अपने प्रबन्धन से बात की जाय यह भी रास्ता ठीक तरह से नहीं सूझता । क्योंकि अतीत में प्राप्त निराशा को लेकर भिन्न- भिन्न शंकायें उत्पन्न होना शुरू हो जाती हैं । ज्यादा प्रयास भी किया तो वह नौकरी जो है उससे भी हांथ धोना पड़ सकता है । साथ ही आप पर अनुशासनिक कार्यवाही करके संस्थान से बाहर निकाल दिया जाता है । क्यों कि नियोक्ता कुछ भी कर सकने में सक्षम है!

सारी योग्यता होने के बाद भी यह अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाते यह । उसके पीछे का भाव जगजाहिर है । एक तो तनख्वाह कम..! दूसरी ओर जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को प्राप्त करने में मंहगाई की मार । इनका खाली समय सार्थक उपयोग में नही जा पाता कि ये कुछ और बेहतर भी सोच सकें आने वाले कल को बेहतर बनाने के लिए ।

सरकार निजी संस्थानो को धड़ाधड़ मान्यता दे रही है पर क्या इन संस्थानो में नियुक्त शिक्षको के प्रति भी ध्यान है , इनका भी भविष्य उज्ज्वल हो सकेगा । न मिले इन्हें सरकारी शिक्षको के समान वेतन पर कोई ऐसा मध्यमार्ग निकले कि ये सन्तुष्ट भी हो सकें और अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त हो सकें...!

Thursday, September 24, 2009

हां ! सेलरी चली गयी चन्दे में .....!

हां ! सेलरी चली गयी चन्दे में । बहुत ही अजीब महसूस होता है । तरह तरह के लोग होते हैं ये चन्दे वाले । न जाने कौन सा पाठ पढ़ कर चन्दा काटने की कारगुजारी शुरू कर देते हैं । इनका बाजार हमेशा गर्म होता है । कभी भी खाली नहीं रहते । इनका मौसम सदाबहार है । आ जाते हैं सड़क पर । अपने लाव लश्कर के साथ अंजाम देने अपने काम को । बड़ी बारीकी से पेश आते हैं । शुरुआत होती है साल के आरंभ में वसंत पंचमी से फिर राम नवमी,विश्वकर्मा पूजा, दुर्गा पूजा, काली पूजा, गणेश पूजा , । ये तो धार्मिक माध्यम हैं । और भी मायने हैं जैसे - गरीब की बेटी की शादी का बहाना,होली मिलन, सांस्कृतिक आयोजन, समाज कार्य, लोक हित, सम्मान समारोह आदि ।

क्या कहते हैं -- अरे साब जी ! इतना तो ठेले वाले देने में अपनी तौहीनी समझते हैं । आप तो गाड़ी घोड़े से हैं । इन चन्दे लेने वालों को कौन समझाये कि ठेले और खोमचे वालों का दायरा अपने सीमित दायरे में होता है । यहां तो घर से निकलो सड़क पर हर चार पांच किमी पर रोकने वाले मिल जाते हैं । सबको अपनी आस्थानुसार सन्तुष्ट करना होता हैं । सड़क पर चलना जो है(आशय समझ सकते हैं)।

कभी कभी विवेक साथ नहीं देता कि इनके साथ कौन सा बर्ताव हो । अरे अगर उत्सव संपादित करना ही है अपनी क्षमतानुसार ही करें क्या जरूरत है कि शक्ति प्रदर्शन के लिये अन्य राहगीर पर पिल पडे़ । यह भी कोरा सच है कि प्राप्त धनराशि का सार्थक उपयोग हो ,ऐसा प्रतीत नहीं होता । और भी कहते हैं -- इतना कम न दीजिएगा कि हम लोगों को कुछ कहना पडे़ । अपनी मर्यादा का ध्यान अवश्य करियेगा । यहां तक कि पिछली रसीद तक दिखाने को तैयार हो जाते हैं ।

अभी मंहगाई ने क्या कम बजट बिगाड़ा था । कितने सामंजस्य के बाद सुविधाओं को सीमित करने की बात ही हो रही थी कि मर्यादा और आस्था के साथ सामंजस्य का कार्य व्यापार ने तो निचोड़ के रख दिया ...?

Monday, September 21, 2009

विचार क्रान्ति के माध्यम से ...!

आज कितना आसान हो गया है इस भौतिकवादी दुनियां में अपनी संवेदना को ढूढना । रोज सुबह होते ही इस फिराक में कि कब फुरसत मिले और आ जाऊं उस जगह जहां ऐसी दुनिया बसती है जहां कोई अपने पराये का भेद नहीं । बस विचार क्रान्ति के माध्यम से ही हार्दिक और मानसिक शान्ति की खोज में तल्लीनता से एक कुनबा लगा है । जो बिना किसी भेदभाव के अपने विचारों से सबका उत्साहवर्धन करते हैं । किसी भी प्रकार से प्राप्त जानकारी यदि प्रासंगिक है उसे अवश्य ही ब्लाग पर डालते हैं जिससे सभी ब्लागर इसका समुचित लाभ उठाकर अपनी जिज्ञासा को शान्त कर सकें ।

यथार्थ जीवन में दिख रहा भ्रष्टाचार देख कर मन ही मन उद्वेलित हो उठता हूं । सच है कि यहां कोई अपना पराया नहीं पर स्वार्थ के वशीभूत हो अपनेपन का स्वांग रचना और काम निकल जाने के बाद आसानी से अलग कर देना जैसे आम बात हो गयी है ।जब देखो तब अपनी डफली बजा बजा खुद को सिद्ध करने की बात होती रहती है ।

सामान्य जीवन में दिख रहा उहापोह, ऊंच नीच का भाव,ईर्श्या , जलन, पूर्वाग्रह और भी बहुत कुछ । ये सब क्या मनः स्थिति को अवसाद से भरने के लिये कम है । सारे सवालों का जवाब दे पाना आसान नहीं । जाय तो जाय कहां आदमी । दहलीज से कदम बाहर ज्यों ही निकलते हैं ,सामना इन्हीं लोगों से होना है कदम कदम पर । खुद को क्षमतानुसार अभिव्यक्त करने का कोई स्थान ही नहीं । कम से कम संयोग से ही सही जितना समय मिल जाय उतना ही मनोदशा को स्वस्थ करने के लिए ब्लागिंग मंच तो है । यहां ऐसी दुनिया है जहां निरपेक्ष भाव से अभिव्यक्ति को स्थान मिल रहा है । सीधे तौर पर कोई पूर्वाग्रह नहीं दिखता ।

संवेदना और विचारों के पुष्ट होने का बेहतर मार्ग है ब्लागिंग । बेहद जरूरी है यह । शायद इसके बारे में जिसने इसे बनाया इतना सफल होने की स्वस्थ कल्पना उसने भी न की होगी । यह वृक्ष आज इतना विशाल फलक वाला होगा जिसमें हम सब अपने विचारों को प्लेटफार्म दे सकेंगे ...! और इतना फूलेगा फलेगा.... ।

Sunday, September 20, 2009

वाद विवाद को गति देने से......

हर विचार ,आन्दोलन ,अवधारणाओं की अपनी अपनी ऐतिहासिक स्थिति रही है । विचारों को उचित स्थान तभी मिल पाता है जब उसे सामाजिक स्वीकृति प्राप्त हो । बिना सामाजिक स्वीकृति के आपके विचारों को वैधता नही मिलती ।किसी को कोई अधिकार नहीं कि वह किसी की सीमा का अनायास ही अतिक्रमण करते दिखें । सबका विचार अपनी सीमा में स्वतंत्र हैं ।

किसी पूर्वाग्रह के वशीभूत कब तक जनता कॊ अपनी सीमाओं रहने के लिये कहना उचित होगा । जब तक अपनी पहचान स्थायित्व की ओर बढ़ते हुए न दिखेंगे कोई भी आपकी ओर बढ़ता न दिखेगा । वाद विवाद को गति देने से अनेक ऐसे गड़े मुद्दे बंद बोतल से निकले हुए जिन्न की तरह सामने आ खड़ा होगा और मामला सुलझने की बजाय उलझना शुरु हो जायगा ।

अब बहुत हो चुका । आवश्यकता इस बात की है एक बार फिर अपने उस मोड़ से सबक ले बढ़ें उस ओर जिसके निमित्त हम कृतसंकल्पित हो चले थे । अन्यथा हमारा उद्देश्य असफल हो जायेगा । हम हिन्दी सेवक हैं । हमारा उद्देश्य हिन्दी सेवा ही है न कि विवादों को जन्म देना । ये विवाद हमें जब अपने सींखचों मे जकड़ लेंगे । इस नागफांस से बच निकलना बहुत ही कठिन होगा ।

विवादों को तूल देने से घात प्रतिघात , खेमेबाजी , छीटाकशी आदि को बढा़वा मिलता है । ऐसा नहीं होना चाहिए । हम सब हिन्दी सेवी हैं हमारा काम हिन्दी की मनोयोग से सेवा करना ही उचित है और साथ ही हर उस व्यक्ति के मार्ग में रचनाधर्मिता के संदंर्भ में आ रहे रोड़ों को येन केन प्रकारेण हटाना है ।

हिन्दी सेवा ! भारत सेवा !

Saturday, September 19, 2009

तेजी से उभर रही अर्थव्यवस्था : कितना सच .....!

भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में कुछ स्वप्नलोकी आशाएं सामने आ रही हैं । हाल ही में प्रधानमन्त्री डा० मनमोहन सिंह जी की अध्यक्षता में हुई योजना आयोग की बैठक में पिछले वित्त वर्ष की विकास दर नौ फीसदी से काफी कम रही थी।योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया का मानना है कि देश के लिये अगला छः माह अत्यन्त महत्वपूर्ण है । संभव है कि देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाय ।

भारत में पूंजी निवेश की संभावनायें निरन्तर बढ़ रही हैं । ऐसा माना जाय तो इसमे अतिशयोक्ति न होगी । पूंजी निवेश से अपार संभावनाओं को बल मिलेगा । जब कभी भी ऐसा हुआ सकारात्मक परिणाम सामने देखने को मिला है । देश की जनता ने हमेशा प्रगति के मार्ग की अपेक्षा की है । ऐसा देख कर जो बात सामने आती है वह है अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना ।

श्री अहलूवालिया की बात यदि रंग लायी , संभव है सार्थक परिणाम सामने आ जांय । विश्व की मंदी से भारत के अछूते होने की बात कितनी मात्रा में सच होगी यह तो समय ही बतायेगा । सुधर रहा आर्थिक परिवेश विदेशी निवेशकों को कितना आकर्षित कर सकेगा । ऐसा संभव हुआ तो विश्व स्तर पर हमारी पहचान तेजी से उभर रही अर्थव्यवस्था के रूप में होगी ।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था उसकी जान होती है । जब तक अर्थव्यवस्था नहीं मजबूत होगी विकास कार्यों को किस हद तक बढ़ावा मिलेगा ?

Wednesday, September 16, 2009

परमाणु उर्जा के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम...!

परमाणु उर्जा के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम को देखकर आने वाले समय में बेहतरी का अन्दाजा लगाना स्वाभाविक है ।
भारत की यात्रा पर आये मंगोलिया के राष्ट्रपति साखियगिन एल्बेगदोर्ज और भारत के प्रधानमंत्री डा० मनमोहन सिंह के बीच हुई वार्ता में परमाणु उर्जा व चार अन्य करारों पर हस्ताक्षर हुआ । जिसमें सांस्कृतिक आदान - प्रदान, चिकित्सा सहयोग, सांख्यिकी आंकड़ो का आदान - प्रदान को लेकर चर्चा हुई ।

मंगोलिया से पहले अब तक भारत ने अमेरिका, फ्रांस, रूस व कजाकिस्तान से समझौता किया है । इन देशों से मिलने वाला यूरेनियम हमारे परमाणु बिजली संयन्त्रों के काम आयेगा । ये सारे प्रयास यदि निर्धारित समय से अपनी मंजिल की ओर पहुंचे तो वह दिन दूर नही कि हमें भरपूर मात्रा में बिजली मिलेगी ।

परमाणु उर्जा को लेकर भारत की जागरूकता के संबंध में यह कहा जा सकता है कि अपने उद्देश्यों को लेकर किये जा रहे प्रयासों में तेजी की आवश्यकता है । यदि ऐसा हुआ तो हमें विद्युत और विद्युतीकरण को लेकर आ रही कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा । किसी भी देश के विकास में उसके प्राकृतिक व गैर प्राकृतिक संसाधनो का बहुत योगदान होता है । इनके बीच सामंजस्य का भाव बनाकर ही लम्बी अवधि तक उर्जा प्राप्त किया जा सकता है अन्यथा असन्तुलन को बढ़ावा मिलेगा और आने वाले समय में और संकट की स्थिति से दो - चार होना पडे़गा ।

Tuesday, September 15, 2009

पर्यावरणीय जागरुकता को लेकर.......!

प्रयोग यदि सही तरीके से हो ,परिणाम खुद ब खुद रंग दिखाने लगते हैं । कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला । पास के एक गांव में । एक नुक्क्ड़ नाटक के माध्यम से पर्यावरणीय जागरूकता को लेकर मंचन हो रहा था ।उसका मुख्य उद्देश्य बुन्देलखण्ड व विन्ध्य क्षेत्र में कम से कम पांच सौ करोड़ पौधों के वृक्षारोपण को ले कर था । गांव में मन्दिर के पास अपने उद्देश्यों को ले कर जन जागरूकता के प्रति किया गया प्रयास कहीं से कमतर प्रतीत नहीं हो रहा था ।

लोगों में इसकी सार्थकता का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर वर्ग के लोग,बूढ़े,वयस्क,महिलाएं,बच्चे सभी अधिक संख्या में उपस्थित थे । अभिनेता अपने अभिनय से सबको लुभाये जा रहा था । हंसलोल बातों के बीच-बीच में काम की बातें इस प्रकार कह जाता था कि सभी उसकी बात से प्रभावित हो जाते थे । वृक्ष लगाने को ले कर सभी कृतसंकल्पित हो रहे थे ।

सचमुच ! यदि हमारी सरकार जितना पैसा वृक्षारोपण को ले कर खर्च कर रही है उसका सौ फीसदी सही तरीके से उपयोग में लाया जाय तो जनता उत्कृष्ठ काम देखकर बिना समझाये समझ जायेगी कि उसे अपने पर्यावरण के कितना जागरूक होना है । स्वाभाविक है अपेक्षित परिणाम सामने आने लगंगे । जब तक खुद में पारदर्शिता का आभाव रहेगा किसी और से कितना आगे आने के लिए प्रेरित कर सकेंगे ।

अरे...! ये पब्लिक है । सब जानती है ।

Monday, September 14, 2009

आईये...! हिन्दी दिवस पर ....!

"आज पहली बार ऐसा संविधान बना है जबकि हमने अपने संविधान में एक भाषा रखी है जो संघ की भाषा होगी।"
- डा० राजेन्द्र प्रसाद

हमें अपनी भाषा मिली
सविधान सभा में
शुरू हुई बहस
१२सितम्बर १९४९ को
चार बजे अपराह्न से
हुई समाप्त
१४ सितम्बर १९४९ को
स्थान मिला
संविधान के भाग - १४ व
वर्तमान भाग-१७ में ।

काम - काज के रूप में हिन्दी आज नये - नये पड़ाव से हो कर गुजर रही है ।
आईये...! हिन्दी दिवस पर हम सभी आमूल चूल रूप में अपना सार्थक योगदान दें ।

Saturday, September 12, 2009

भारत-चीन सीमा विवाद

समय-समय पर चीन अपनी वास्तविकता का परिचय देता आ रहा है कि वह भारत के बारे में क्या सोचता है । सीमा के अतिक्रमण  की बात नयी नहीं । अपनी कमजोरियों के चलते भारत को १९६२ में हार का सामना भी करना पड़ा है पर अब वह हालात नहीं कि आसानी से जिसको जो करना है कर के निकल जायेगा।माकूल जवाब देने में भारत आज समर्थ है । सीमा के अतिक्रमण से चीन बाज नहीं आ रहा । सीधे तौर पर चीन अपना रुख साफ नहीं कर रहा ।

आज भारत भी अपने लिये सैन्य व सुरक्षा की दृष्टि सक्षम है । चाहे चीन लाख प्रयास कर ले पर उसके मंसूबे पूरे नहीं हो सकते । एशिया में भारत अपनी पहचान हर स्तर पर साबित कर रहा है । किसी भी बहकावे में आने की स्थिति आज नहीं ।

Thursday, September 10, 2009

मानवाधिकारों की अवधारणा के विकास के संदर्भ में

मानवाधिकार संबंधी साक्ष्य प्राचीन विचार तथा प्राकृतिक अधिकारो की दार्शनिक अवधारणाओं में भी विद्यमान है । प्लेटो (427-348 B.C.) प्रथम चिन्तक रहा है जिसने नैतिकता की बात की ,कहा कि व्यक्तियों को सार्वजनिक कल्याण के लिये कार्य करना चाहिए ।अरस्तू ने भी अपनी पुस्तक पालिटिक्स में लिखा कि न्याय सद्गुण और अधिकार भिन्न -भिन्न प्रकार के संविधानों और परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं । सिसरो ने कहा कि ऐसी सार्वभौमिक विधियां होनी चाहिए जो रुढ़िगत नागरिक अधिकारों से श्रेष्ठ हो ।

यूनान में नागरिकों को विभिन्न मौलिक अधिकार प्रदान किये गये ,ऐसे ही अधिकार रोम में रोमवासियों को सुनिश्चित कराये गये । स्पष्ट है कि मानवाधिकारों की अवधारणा की उत्पत्ति सामान्यतया ग्रीक, रोमन, प्राकृतिक विधि के स्टोयसिज्म के सिद्धान्तों में पाया जाता है । उन्नीसवीं सदी तक कई राज्यों ने अपने संविधानों में मानवाधिकारों की रक्षा के लिये प्रावधान निश्चित कर दिये थे किन्तु उन अधिकारों को मानवाधिकार नहीं कहा जाता था । मानवाधिकार शब्द सर्वप्रथम थामस पेन ने किया था जो कि फ्रांसीसी घोषणा में पुरुषों के अधिकारों का अनुवाद है ।

वर्तमान समय में प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को,यूनिसेफ,और संयुक्त राष्ट्र संघ अन्य एजेंसिया मानवाधिकार पर चर्चा करती हैं ,वाद-विवाद,सेमिनार होते हैं ,रिपोर्टें जारी होती हैं । इन सबका उद्देश्य मानवाधिकारों के हनन को रोकना है और मानवाधिकारों के प्रति जगरूकता फैलाना है । भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी दो तिहाई जनसंख्या गांवों मे निवास करती है । अब तक यहां निवास करने वालों का कितना ध्यान रखा जा रहा है ? आधी दुनिया को ये मानवाधिकार कहां तक प्राप्त हो पाया है । सं० राष्ट्र० इस संबंध में कितना सफल हो पाया है ? कहीं मानवाधिकार ऐसे उपकरण तो नहीं बनते जा रहे जिसके माध्यम से सामरिक व आर्थिक हितों की पूर्ति की जाती हो । आज विकसित देश भारत को मानवाधिकारों की रक्षा करने का पाठ पढ़ाने की बात करके खुद को हास्यास्पद स्थिति में डाल रहे हैं । भारत नेअपने यहां मानवाधिकारों की रक्षा के लिए विषेश प्रावधान किये हैं । यहां अब अल्पसंख्यकों के प्रति किसी भी प्रकार का भेदभाव करना संभव नहीं ,इस संबंध में किसी भी व्यक्ति द्वारा अनुचित कदम उठाने पर तत्काल कार्यवाही की जाती है । भारत "मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा" के प्रति बचनबद्ध है।

(क्रमशः)

Tuesday, September 8, 2009

मानवाधिकारों के प्रकार

मानवाधिकारों के प्रकार --
                            ये अदेय व अविभाज्य हैं।संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानवाधिकारों के क्षेत्र में किए गये प्रयासों के आधार पर इसे चार प्रकारों में बांट सकते हैं--

नागरिक मानवाधिकार(Civil Human Rights)--
                              इस प्रकार के अधिकारों मे प्राण,स्वतन्त्रता एवं व्यक्तियों की सुरक्षा,एकान्तता का अधिकार, गृह व पत्राचार ,संपत्ति रखने का अधिकार,उत्पीड़न से स्वतन्त्रता,मानवीय एवं अपमानजनक व्यवहार से स्वतन्त्रता का अधिकार,विचार,अन्तरात्मा एवं धर्म तथा आवागमन की स्वतन्त्रता आदि शामिल है।
राजनीतिक मानवाधिकार--(Political Human Rights)--
                                             राष्ट्रीयता ,विचार व अभिव्यक्ति ,सरकार में शामिल होना,शान्तिपूर्वक सभा एवं संघ गठित करने का अधिकार शामिल है ,साथ ही मत देने का अधिकार,निर्वाचन में निर्वाचित होने का अधिकार, लोक कार्यों मे चयनित प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेने का अधिकार आदि  को राजनीतिक मानवाधिकारों के अन्तर्गत रखा गया है ।
सामाजिक व आर्थिक मानवाधिकार--(Social and Economic Human Rights)--
                                                               इन अधिकारों के बिना मानव का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है । इसमें सामाजिक सुरक्षा कार्य करने , आराम करने व अवकाश प्राप्त करने ,कुशल जीवन जीने के लिये आवश्यक जीवनस्तर बनाये रखने के लिये पर्याप्त भोजन वस्त्र ,आवास, काम के अधिकार, सामाजिक सुरक्षा,मानसिक स्वास्थ्य व शिक्षा का अधिकार शामिल है ।
सांस्कृतिक मानवाधिकार--(Cultural Human Rights)--
                                                विभिन्न स्थान पर निवास करने वालों की अपनी-अपनी संस्कृतियां होती हैं । 
जिन्हें संरक्षित करने का अधिकार मानव जाति को है । १९६८ में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार सम्मेलन में कहा गया--
                                 चूंकि मानवाधिकार एवं मूलभूत स्वतंत्रताएं अविभाज्य हैं इसलिये आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों  के उपयोग के बिना सिविल व राजनैतिक आधिकारों की पूर्ण प्राप्ति असंगत है ।
                                  महासभा ने १९७७ में यह भी कहा था कि सभी प्रकार के मानवाधिकार एवं मूलभूत स्वतंत्रताएं अविभाज्य और अन्योन्याश्रित होते हैं । १९९३ के वियना सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया गया---
          सभी मानव अधिकार सार्वभौमिक , अविभाज्य ,अन्योन्याश्रित व अन्तर्संबंधित है । अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को वैश्विक रूप के समान आधार एवं समान बल पर समान तरीके से समझना चाहिए |


                                                                                                                    (क्रमशः.... )

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