मानवाधिकार संबंधी साक्ष्य प्राचीन विचार तथा प्राकृतिक अधिकारो की दार्शनिक अवधारणाओं में भी विद्यमान है । प्लेटो (427-348 B.C.) प्रथम चिन्तक रहा है जिसने नैतिकता की बात की ,कहा कि व्यक्तियों को सार्वजनिक कल्याण के लिये कार्य करना चाहिए ।अरस्तू ने भी अपनी पुस्तक पालिटिक्स में लिखा कि न्याय सद्गुण और अधिकार भिन्न -भिन्न प्रकार के संविधानों और परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं । सिसरो ने कहा कि ऐसी सार्वभौमिक विधियां होनी चाहिए जो रुढ़िगत नागरिक अधिकारों से श्रेष्ठ हो ।
यूनान में नागरिकों को विभिन्न मौलिक अधिकार प्रदान किये गये ,ऐसे ही अधिकार रोम में रोमवासियों को सुनिश्चित कराये गये । स्पष्ट है कि मानवाधिकारों की अवधारणा की उत्पत्ति सामान्यतया ग्रीक, रोमन, प्राकृतिक विधि के स्टोयसिज्म के सिद्धान्तों में पाया जाता है । उन्नीसवीं सदी तक कई राज्यों ने अपने संविधानों में मानवाधिकारों की रक्षा के लिये प्रावधान निश्चित कर दिये थे किन्तु उन अधिकारों को मानवाधिकार नहीं कहा जाता था । मानवाधिकार शब्द सर्वप्रथम थामस पेन ने किया था जो कि फ्रांसीसी घोषणा में पुरुषों के अधिकारों का अनुवाद है ।
वर्तमान समय में प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को,यूनिसेफ,और संयुक्त राष्ट्र संघ अन्य एजेंसिया मानवाधिकार पर चर्चा करती हैं ,वाद-विवाद,सेमिनार होते हैं ,रिपोर्टें जारी होती हैं । इन सबका उद्देश्य मानवाधिकारों के हनन को रोकना है और मानवाधिकारों के प्रति जगरूकता फैलाना है । भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी दो तिहाई जनसंख्या गांवों मे निवास करती है । अब तक यहां निवास करने वालों का कितना ध्यान रखा जा रहा है ? आधी दुनिया को ये मानवाधिकार कहां तक प्राप्त हो पाया है । सं० राष्ट्र० इस संबंध में कितना सफल हो पाया है ? कहीं मानवाधिकार ऐसे उपकरण तो नहीं बनते जा रहे जिसके माध्यम से सामरिक व आर्थिक हितों की पूर्ति की जाती हो । आज विकसित देश भारत को मानवाधिकारों की रक्षा करने का पाठ पढ़ाने की बात करके खुद को हास्यास्पद स्थिति में डाल रहे हैं । भारत नेअपने यहां मानवाधिकारों की रक्षा के लिए विषेश प्रावधान किये हैं । यहां अब अल्पसंख्यकों के प्रति किसी भी प्रकार का भेदभाव करना संभव नहीं ,इस संबंध में किसी भी व्यक्ति द्वारा अनुचित कदम उठाने पर तत्काल कार्यवाही की जाती है । भारत "मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा" के प्रति बचनबद्ध है।
यूनान में नागरिकों को विभिन्न मौलिक अधिकार प्रदान किये गये ,ऐसे ही अधिकार रोम में रोमवासियों को सुनिश्चित कराये गये । स्पष्ट है कि मानवाधिकारों की अवधारणा की उत्पत्ति सामान्यतया ग्रीक, रोमन, प्राकृतिक विधि के स्टोयसिज्म के सिद्धान्तों में पाया जाता है । उन्नीसवीं सदी तक कई राज्यों ने अपने संविधानों में मानवाधिकारों की रक्षा के लिये प्रावधान निश्चित कर दिये थे किन्तु उन अधिकारों को मानवाधिकार नहीं कहा जाता था । मानवाधिकार शब्द सर्वप्रथम थामस पेन ने किया था जो कि फ्रांसीसी घोषणा में पुरुषों के अधिकारों का अनुवाद है ।
वर्तमान समय में प्रत्येक वर्ष 10 दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को,यूनिसेफ,और संयुक्त राष्ट्र संघ अन्य एजेंसिया मानवाधिकार पर चर्चा करती हैं ,वाद-विवाद,सेमिनार होते हैं ,रिपोर्टें जारी होती हैं । इन सबका उद्देश्य मानवाधिकारों के हनन को रोकना है और मानवाधिकारों के प्रति जगरूकता फैलाना है । भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी दो तिहाई जनसंख्या गांवों मे निवास करती है । अब तक यहां निवास करने वालों का कितना ध्यान रखा जा रहा है ? आधी दुनिया को ये मानवाधिकार कहां तक प्राप्त हो पाया है । सं० राष्ट्र० इस संबंध में कितना सफल हो पाया है ? कहीं मानवाधिकार ऐसे उपकरण तो नहीं बनते जा रहे जिसके माध्यम से सामरिक व आर्थिक हितों की पूर्ति की जाती हो । आज विकसित देश भारत को मानवाधिकारों की रक्षा करने का पाठ पढ़ाने की बात करके खुद को हास्यास्पद स्थिति में डाल रहे हैं । भारत नेअपने यहां मानवाधिकारों की रक्षा के लिए विषेश प्रावधान किये हैं । यहां अब अल्पसंख्यकों के प्रति किसी भी प्रकार का भेदभाव करना संभव नहीं ,इस संबंध में किसी भी व्यक्ति द्वारा अनुचित कदम उठाने पर तत्काल कार्यवाही की जाती है । भारत "मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा" के प्रति बचनबद्ध है।
(क्रमशः)
मानवाधिकार के संबंध में श्रेष्ट विचारकों को पढना सुखकर है । आभार ।
ReplyDeleteI'm really thankful to u cuz ur posts abt human rights have helped me alot to prepare my speech on human rights....
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