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Friday, October 16, 2009

एक पहल.......दीपावली पर्व पर ....!

आईये ! आगे आयेंउनके लिये भी । जो नहीं याद करना चाहते । किसी भी ऐसे त्योहार को जो रख दे उनकी दुखती रग पर हांथ । जहां दो वक्त की रोटी भी आसानी से नसीब नहीं होती । ये कर्मकाण्ड, त्योहार, धार्मिक बातें केवल दूसरों से सुनने के लिये होती हैं । अपनाने के लिये नहीं । जीवन की सार्थकता पेट पालने से ऊपर हो ही न । आज खुशियां भी खरीदी जाती हैं मोलभाव करके ।

क्या दीवाली ..? क्या होली..? दो वक्त की रोटी मिले और सुकून की नीद कि कल नहीं खोलना होगा काम । मालिक अच्छा मिला है । आसानी से लम्बी अवधि तक काम करने देगा । बस इनकी तो रोज दिवाली है । अरे क्या सोचना कि मेरे पास वह सब हो जाय जो बडे़ लोगों के पास है । यह भाव घर कर जाता है वहां कि हमें अरमान संजोने का कोई हक नहीं । ये सब बड़ बोली बाते हैं । अरमान संजोया कि अरमान टूटते देरी नहीं लगती ।

हम आज सक्षम हैं । रंग - रोगन कराने में । त्योहार की सार्थकता सिद्ध करनें में । अपने घरों में खुशियों की बहार तो सभी लाते हैं । मंदिर में दिये तो सभी जलाते हैं । अरे...! मंदिर में , अपने घरों में दिया जलाने के साथ - साथ उस घरों के लिये भी पहल करें जहां दीपावली पर दीपों की अवली नहीं होती । किसी तरह से गुलजार हो जाती है सांझ- बिहान के इन्तजार में । वहां तो बस चांदनी रातों का इन्तजार होता है कि झुरमुट से निकले चांद और छप्परों के बीच से हो गुजरे जिससे झुग्गी में रहे रातों में भी हल्की सी रोशनी भिनसार होने तक ।

आईये ! जितना संभव हो उतना ही सही । दीपावली के अवसर पर । अपनी परिधि में । तलाशें वह घर । जहां संझवत भी आसानी से नहीं लगता । जलायें एक दीया दिवाली के दिन । रोशन हो जाय उनका भी घर । और खिला दें मिठाई उन्हें भी । उन्हें भी खुशी हो हमारी खुशी पर । जल न जाय उनका हृदय । आह न लगे उनकी । तभी होगी -.........शुभ दीपावली..........!

Thursday, October 15, 2009

कल ही जमां कर देंगे चिन्ता मत करिये ......!

एक ऐसी साख जिसका डंका कहां नहीं बजा । विश्वसनीयता के मामले में समाज का कोई ऐसा वर्ग नहीं जो उंगली उठा सके । मामला वर्षों के भरोसा निभाने का जो ठहरा । भारत की बीमा कंपनी-"भारतीय जीवन बीमा निगम" जिसने कभी सोचा भी न होगा कि मुझे अपने ही लोग पैरों में कुल्हाड़ी मार जनता को धोखे में रख अपना व्यवसाय निर्मित करेंगे । बात एल. आई. सी. अभिकर्ताओं की कर रहा हूं । जिसमें कुछ कथित संभ्रान्त हैं । नाम न लेना ही श्रेयश्कर होगा । लोगों को पालिसी करने की ओर आकर्षित करने के लिये लोक-लुभावन बातों से उनके सुन्दर भविष्य के प्रति आश्वस्त कराना कि आप जबरदस्त फायदे में होंगे आपके सभी सपनो को एल. आई. सी. साकार करेगी । दुर्घटना हितलाभ सहित ।

आप पालिसियां करायें और निश्चिन्त हो जांय । आप को प्रीमियम के लिये कोई समय सीमा नहीं । हम हैं ना ।
आगे पीछे भी दे दीजियेगा । भला कौन इस चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं फसेगा और वह भी मानवीय गुणों से अछूता कैसे रह सकता है ? बेचारे आ फंसते हैं इनकी बातों में । करा लेते हैं अच्छी पालिसियां । जिसके प्रीमियम की रकम भी मोटी होती है । कोई कितने अरमान संजोता है अपने भविष्य के प्रति । पालिसी गड्ड में गिरेगी ऐसा कभी कोई नहीं सोचता । आपकी पालिसी शुरू हुई ,शुरू होता है सिलसिला प्रीमियम जमा करने का । आप चिन्ता न करें क्या जरूरत है नेट बैंकिंग की ? क्या जरूरत है आपको एल. आई. सी. आफिस जा लाईन में लग चक्कर लगाने की । हम आप के यहां खुद आकर पैसा ले जायेंगे । आपको परेशान भी न होना होगा ।

ऐसे दस- बीस लोगों की भी पालिसी हो जाय तो इनका साईड बिजनस आराम से चलता है । कारण कि यह आप से प्रीमियम माह की दो-चार तारीख तक आप से पैसे ले लेते हैं । उस माह का पचीस - छब्बीस दिन और अभिकर्ताओं को एल. आई. सी. अगले माह की अन्तिम तारीख तक पैसा जमा करने की छूट उन्हें दे देती है तात्पर्य कुल मिला कर पैसा उनके पास लगभग दो माह में कुछ दिन ही कम के बराबर रहता है । ये लोग पैसे का पूरा इस्तेमाल करते हैं । यह बात कहां तक उचित है ? कभी- कभी ऐसा भी होता है कि पैसा बराबर लेने के बाद भी समय - समय पर प्रीमियम भुगतान नहीं होता । जब आप जा कर स्टेटस देखते हैं तो पता चलता है कि आपकी दो- तीन किश्त बकाया है जबकि आप अपना प्रीमियम समय से अभिकर्ता को दे चुके होते हैं । तफ्तीस करने पर ये अभिकर्ता हांथ जोड़ कर खडे़ हो जाते हैं कि भईया माफ करिये हम इतने व्यस्त थे कि जमा नहीं कर पाये । कल ही जमां कर देंगे चिन्ता मत करिये ब्याज भी मैं ही दूंगा क्योंकि देरी भी हमीं से हुई है ।

अरे पालिसी धारक के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ । अगर ब्याज सहित जमा करने की सोच ये समय से प्रीमियम जमा न करें बीच में यदि कोई असामयिक दुर्घटना घट जाय तो रिस्क की भरपाई कौन करेगा ? ये करेंगे ? एल. आई.सी. तो सीधे मुकर जायगी कि आप का प्रीमियम समय से नहीं जमा है । पालिसी रनिंग कण्डीशन में नहीं है हम दावा का भुगतान नहीं कर सकते । एल. आई. सी . साक्ष्य के आधार पर मुकर जायगी । इधर समय से प्रीमियम अभिकर्ता को देने वाला दुनिया से चला जाय। नामिनि को भुगतान प्रीमियम के पैसे से खेलने वाले ये अभिकर्ता कर सकेंगे ......?

Saturday, October 3, 2009

विश्व पर्यावरण संकट......


आज समूचा विश्व पर्यावरण संकट से जूझ रहा है । 1970 के दशक में पर्यावरणीय विचारात्मक आन्दोलन का प्रारंभ माना जाता है । इसको लेकर हो रहे राजनीति को हरित राजनीति की संज्ञा दी गयी । पर्यावरणवाद के समर्थन में यह कहा गया कि यह विरासत की वस्तु न हो कर भावी पीढ़ी के लिये धरोहर है । पर्यावरण के प्रति जागरूक होना हमारा नैतिक कर्तव्य है । इससे मुह मोड़ के केवल आप खुद को धोखा दे सकते हैं ।

इसकी रक्षा के प्रति हमारा कर्तव्य है कि हम सजग हों । आर्थिक विकास की होड़ में हमने पर्यावरण को जितनी मात्रा में क्षति पहुंचायी है , प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन किया है ठीक उसके समानान्तर संरक्षण के लिये किस हद तक प्रयास किया है । खनिज पदार्थों का नियोजन किये बिना अन्धाधुंध खनन के कारण जो अम्ल बहाये गये हैं जिन्होंने जल स्रोतों को पूर्णतया विषाक्त करके रख दिया है ।

नदियां यूं ही नाले में परिवर्तित हो रही हैं । कल कारखानों की चिमनियों से और मोटर गाड़ियों के धुओं से निकले हानिकारक रासायनिक पदार्थों ने जितना वायु प्रदूषण किया है वह जीव जन्तुओं और पेड़ पौधों के स्वास्थ्य के लिये कम हानिकारक है । उद्योगों से पैदा होने वाले कचरे और न्युक्लियर पावर के प्रयोग से पैदा होने वाले रेडियोधर्मी रिसाव से क्या धरती रहने योग्य बच सकेगी ?

पर्यावरणवाद ने हमेंशा से आर्थिक संवृद्धि पर मानवीय मौलिकताओं को वरीयता दी है । जिससे कि सबका ध्यान इस ओर आकृष्ट हो ही साथ ही ऐसा कार्यक्रम बनाकर निरन्तर प्रयास जिससे सरकार काभी ध्यान आकृष्ट हो सके ।

Friday, October 2, 2009

गांधी जी और आज का परिप्रेक्ष्य....!

गांधी नाम लेते ही मोहन दास करमचन्द गांधी आ खड़े होते हैं मानस पटल पर । बापू,राष्ट्रपिता और भी कई नामों से नवाजे जाने वाले । एक ऐसा व्यक्त्तित्व जिसने जीवन में किसी भी प्रकार के अस्त्र शस्त्रों को स्थान नहीं दिया । इसकी भरपाई के लिये इनके पास इनके विचार थे जिसकी सहायता से इन्हों ने ब्रिटिश शासन की चूलें हिला दी । आंखों पर चश्मा हांथों में लाठी, एक घड़ी और बदन पर एक खादी धोती । किसी आकर्षक व्यक्तित्व के लिये इतना काफी है !

"यंग इण्डिया"(1927) में गांधी जी ने कहा था -
"मेरी शिक्षायें केवल काल्पनिक या व्यावहारिक नहीं हैं, मैं वही कहता हूं जो प्राचीन लोगों ने कहा था । उन्हीं की बातों की शिक्षा देता हूं । मेरा दावा सिर्फ इतना ही है कि ये शिक्षायें सभी अपने जीवन में उतार सकते हैं,क्योंकि मैं ऐसा कर सकता हूं और मैं भी और लोगों की तरह ही एक साधारण व्यक्ति हूं । मुझमें भी वही कमजोरियां हैं जो और लोगों में होती हैं ।"

बापू हमेशा प्रासंगिक रहे और आगे भी रहेंगे लोकतंत्र और जनता के संबंध में उन्होंने "हरिजन"(1939)में कहा था -
"सच्चा लोकतंत्र और जनता का स्वराज कभी भी झूठे और हिंसात्मक ढंगों से नहीं आ सकता है । इसका कारण है कि हिंसा से आये स्वराज में विरोधियों को दबा दिया जाता है या उनका सफाया कर दिया जाता है । उसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं रहती है । व्यक्तिगत स्वतंत्रता केवल पूर्ण अहिंसात्मक राज्य में ही रह सकती है ।"

आज गावों में विवादों के निपटारों के लिये मोबाइल कोर्टॊं की बात सामने आयी है कि विवादों के निपटारों के लिये प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट वाली अदालतों से निपटारा किया जायगा,ये अदालतें बसों से या सरकारी गाड़ियों से गावों को जायगीं ।

इस संबंध में गांधी जी के विचारों का अवलोकन किया जाय तो स्पष्ट होगा कि "हरिजन" (1939) में उन्होंने कहा था - "शक्ति का केन्द्र दिल्ली, बम्बई या कलकत्ता जैसे शहरों में है मैं इसको सात लाख गांवो में बाट दूंगा ।"

गांधी जी नें सत्य और अहिंसा के सिद्धान्तों के आधार पर मानवता को समाज के नव-निर्माण की नई राह दिखाई । जिसे हम कभी भी भुला नहीं सकते ।

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