"यंग इण्डिया"(1927) में गांधी जी ने कहा था -
"मेरी शिक्षायें केवल काल्पनिक या व्यावहारिक नहीं हैं, मैं वही कहता हूं जो प्राचीन लोगों ने कहा था । उन्हीं की बातों की शिक्षा देता हूं । मेरा दावा सिर्फ इतना ही है कि ये शिक्षायें सभी अपने जीवन में उतार सकते हैं,क्योंकि मैं ऐसा कर सकता हूं और मैं भी और लोगों की तरह ही एक साधारण व्यक्ति हूं । मुझमें भी वही कमजोरियां हैं जो और लोगों में होती हैं ।"
बापू हमेशा प्रासंगिक रहे और आगे भी रहेंगे लोकतंत्र और जनता के संबंध में उन्होंने "हरिजन"(1939)में कहा था -
"सच्चा लोकतंत्र और जनता का स्वराज कभी भी झूठे और हिंसात्मक ढंगों से नहीं आ सकता है । इसका कारण है कि हिंसा से आये स्वराज में विरोधियों को दबा दिया जाता है या उनका सफाया कर दिया जाता है । उसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं रहती है । व्यक्तिगत स्वतंत्रता केवल पूर्ण अहिंसात्मक राज्य में ही रह सकती है ।"
आज गावों में विवादों के निपटारों के लिये मोबाइल कोर्टॊं की बात सामने आयी है कि विवादों के निपटारों के लिये प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट वाली अदालतों से निपटारा किया जायगा,ये अदालतें बसों से या सरकारी गाड़ियों से गावों को जायगीं ।
इस संबंध में गांधी जी के विचारों का अवलोकन किया जाय तो स्पष्ट होगा कि "हरिजन" (1939) में उन्होंने कहा था - "शक्ति का केन्द्र दिल्ली, बम्बई या कलकत्ता जैसे शहरों में है मैं इसको सात लाख गांवो में बाट दूंगा ।"
गांधी जी नें सत्य और अहिंसा के सिद्धान्तों के आधार पर मानवता को समाज के नव-निर्माण की नई राह दिखाई । जिसे हम कभी भी भुला नहीं सकते ।
गांधी परिप्रेक्ष्यों से परे हैं -आपने लिखा अच्छा है !
ReplyDeleteगांधी निश्चय ही सभी रेखाओं , आयामों से अलग एक अलग ही आयाम हैं । जयंती पर पुण्य स्मरण !
ReplyDeleteनमन् अनिर्वच ! (गांधी-जयंती पर विशेष ) | सच्चा शरणम्
main bhi aapse sehmat hoin.......
ReplyDeletehttp://rajdarbaar.blogspot.com/
देश के दो लाल...एक सत्य का सिपाही...दूसरा ईमानदारी का पुतला...लेकिन अगर आज गांधी जी होते तो देश की हालत देखकर बस यही कहते...हे राम...दूसरी ओर जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले शास्त्री जी भी आज होते तो उन्हें अपना नारा इस रूप मे नज़र आता...सौ मे से 95 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान...
ReplyDeleteगान्धी के ग्राम स्वराज्य की अच्छी याद दिलाई आप ने।
ReplyDeleteजाने 'सुराज' कब आएगा?
बहुत बढ़िया पोस्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteबापू जी एवं शास्त्रीजी को शत शत नमन
सचमुच नहीं भुला सकते और भुलाना भी नहीं चाहिए
ReplyDeleteमेरी शिक्षायें केवल काल्पनिक या व्यावहारिक नहीं हैं, मैं वही कहता हूं जो प्राचीन लोगों ने कहा था । उन्हीं की बातों की शिक्षा देता हूं । मेरा दावा सिर्फ इतना ही है कि ये शिक्षायें सभी अपने जीवन में उतार सकते हैं,क्योंकि मैं ऐसा कर सकता हूं और मैं भी और लोगों की तरह ही एक साधारण व्यक्ति हूं । मुझमें भी वही कमजोरियां हैं जो और लोगों में होती हैं ।"...ye baate apne me bahut arth rakhti hai...khud ko sadharn man ke bhi wo asdharan the...
ReplyDeleteगान्धी तो प्रासंगिक रहेंगे ही क्योंकि वे एक व्यक्ति नही विचार हैं ।
ReplyDeleteइस टिप्पणी के माध्यम से, सहर्ष यह सूचना दी जा रही है कि आपके ब्लॉग को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।
ReplyDeleteअधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।
बधाई।
बी एस पाबला