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Friday, October 2, 2009

गांधी जी और आज का परिप्रेक्ष्य....!

गांधी नाम लेते ही मोहन दास करमचन्द गांधी आ खड़े होते हैं मानस पटल पर । बापू,राष्ट्रपिता और भी कई नामों से नवाजे जाने वाले । एक ऐसा व्यक्त्तित्व जिसने जीवन में किसी भी प्रकार के अस्त्र शस्त्रों को स्थान नहीं दिया । इसकी भरपाई के लिये इनके पास इनके विचार थे जिसकी सहायता से इन्हों ने ब्रिटिश शासन की चूलें हिला दी । आंखों पर चश्मा हांथों में लाठी, एक घड़ी और बदन पर एक खादी धोती । किसी आकर्षक व्यक्तित्व के लिये इतना काफी है !

"यंग इण्डिया"(1927) में गांधी जी ने कहा था -
"मेरी शिक्षायें केवल काल्पनिक या व्यावहारिक नहीं हैं, मैं वही कहता हूं जो प्राचीन लोगों ने कहा था । उन्हीं की बातों की शिक्षा देता हूं । मेरा दावा सिर्फ इतना ही है कि ये शिक्षायें सभी अपने जीवन में उतार सकते हैं,क्योंकि मैं ऐसा कर सकता हूं और मैं भी और लोगों की तरह ही एक साधारण व्यक्ति हूं । मुझमें भी वही कमजोरियां हैं जो और लोगों में होती हैं ।"

बापू हमेशा प्रासंगिक रहे और आगे भी रहेंगे लोकतंत्र और जनता के संबंध में उन्होंने "हरिजन"(1939)में कहा था -
"सच्चा लोकतंत्र और जनता का स्वराज कभी भी झूठे और हिंसात्मक ढंगों से नहीं आ सकता है । इसका कारण है कि हिंसा से आये स्वराज में विरोधियों को दबा दिया जाता है या उनका सफाया कर दिया जाता है । उसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं रहती है । व्यक्तिगत स्वतंत्रता केवल पूर्ण अहिंसात्मक राज्य में ही रह सकती है ।"

आज गावों में विवादों के निपटारों के लिये मोबाइल कोर्टॊं की बात सामने आयी है कि विवादों के निपटारों के लिये प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट वाली अदालतों से निपटारा किया जायगा,ये अदालतें बसों से या सरकारी गाड़ियों से गावों को जायगीं ।

इस संबंध में गांधी जी के विचारों का अवलोकन किया जाय तो स्पष्ट होगा कि "हरिजन" (1939) में उन्होंने कहा था - "शक्ति का केन्द्र दिल्ली, बम्बई या कलकत्ता जैसे शहरों में है मैं इसको सात लाख गांवो में बाट दूंगा ।"

गांधी जी नें सत्य और अहिंसा के सिद्धान्तों के आधार पर मानवता को समाज के नव-निर्माण की नई राह दिखाई । जिसे हम कभी भी भुला नहीं सकते ।

10 comments:

  1. गांधी परिप्रेक्ष्यों से परे हैं -आपने लिखा अच्छा है !

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  2. गांधी निश्चय ही सभी रेखाओं , आयामों से अलग एक अलग ही आयाम हैं । जयंती पर पुण्य स्मरण !

    नमन् अनिर्वच ! (गांधी-जयंती पर विशेष ) | सच्चा शरणम्

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  3. main bhi aapse sehmat hoin.......

    http://rajdarbaar.blogspot.com/

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  4. देश के दो लाल...एक सत्य का सिपाही...दूसरा ईमानदारी का पुतला...लेकिन अगर आज गांधी जी होते तो देश की हालत देखकर बस यही कहते...हे राम...दूसरी ओर जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले शास्त्री जी भी आज होते तो उन्हें अपना नारा इस रूप मे नज़र आता...सौ मे से 95 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान...

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  5. गान्धी के ग्राम स्वराज्य की अच्छी याद दिलाई आप ने।
    जाने 'सुराज' कब आएगा?

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  6. बहुत बढ़िया पोस्ट प्रस्तुति
    बापू जी एवं शास्त्रीजी को शत शत नमन

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  7. सचमुच नहीं भुला सकते और भुलाना भी नहीं चाहिए

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  8. मेरी शिक्षायें केवल काल्पनिक या व्यावहारिक नहीं हैं, मैं वही कहता हूं जो प्राचीन लोगों ने कहा था । उन्हीं की बातों की शिक्षा देता हूं । मेरा दावा सिर्फ इतना ही है कि ये शिक्षायें सभी अपने जीवन में उतार सकते हैं,क्योंकि मैं ऐसा कर सकता हूं और मैं भी और लोगों की तरह ही एक साधारण व्यक्ति हूं । मुझमें भी वही कमजोरियां हैं जो और लोगों में होती हैं ।"...ye baate apne me bahut arth rakhti hai...khud ko sadharn man ke bhi wo asdharan the...

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  9. गान्धी तो प्रासंगिक रहेंगे ही क्योंकि वे एक व्यक्ति नही विचार हैं ।

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  10. इस टिप्पणी के माध्यम से, सहर्ष यह सूचना दी जा रही है कि आपके ब्लॉग को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।

    अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।

    बधाई।

    बी एस पाबला

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