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Tuesday, April 6, 2010

मानवता कहां खो गयी...

पहले शराब ऊपर से जहरीली शराब..! सुन कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं..! बार-बार हो रही घटनाओं ने हृदय को तार-तार कर दिया है... आखिर अपनी ही प्रजाति का दुश्मन कोई कैसे हो जाता है ..? वह भी मानव जिसे प्रकृति में सर्वोच्च प्राणी होने का दर्जा प्राप्त है । बात समझ में आती है कि वह तबका जो मजदूरी करके ही जीवन यापन करता है , अधिकांशत: सस्ती शराब से अपने गम को भुलाने का काम करता है । दिन में क्या हुआ ? उन पर क्या बीती ? कितनों ने शोषण किया ? शाम घर लौटते सब शराब में डुबो देना ही उनके कर्म में है । क्या इन लोगों को रात में चैन की नींद पाने के लिये कोई अन्य साधन नहीं ?

यह कैसा व्यवसाय हैं जो सुरसा का रूप ले रहा है ? जिसकी कोई आधिकारिक स्थिति नहीं । बात कच्ची शराब बनाने वाले धन्धे की कर रहा हूं जो अवैध रूप से शहरों से सटी  आबादी में छुपे रूप में चलाया जा रहा है । यह बेहद जानलेवा रूप में सामने आ रहा है, फिर भी संज्ञान में न लेना कहां की समझदारी  है । जहरीली शराब का सेवन कोई जान बूझ कर तो करता नहीं । अनायास ही जान जोखिम में कौन डालना चाहेगा ? अनायास ही जब जान जोखिम में हो जाय , इसके लिये जिम्मेदार कौन ? शराब पीने वाला या पिलाने वाला या जहरीली शराब बनाने वाला । वैध-अवैध के विचार से  भी ऊपर का प्रश्न है यह....!

सुबह सुबह उठ कर  दैनिक समाचार पत्र पर दृष्टि  राष्ट्रीय स्तर की खबरों के बाद आंचलिक खबरों पर जानी स्वाभाविक है । अभी कुछ महीने पहले  ऐसी घटी घटना मानस पटल से उतरी ही न थी कि पुन: आज "जहरीली शराब : मृतक संख्या दस पहुँची..." पढ़ कर बार-बार सोचने को विवश होना पड़ रहा है कि ऐसे लोग जो ऐसे व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं  जिससे जिन्दगी और मौत के बीच का फासला सिमट जाय यह कितना मानवीय है ? अरे..!ऐसे मौत के सौदागरों से जाती दुश्मन  ही अच्छे हैं जो कम से कम सामने से वार करते हैं ।

Wednesday, March 10, 2010

महिला आरक्षण

महिला आरक्षण विधेयक ने पहली बाधा अवश्य पार कर ली है किन्तु इसे अभी अनेक पड़ाव पार करने बाकी  हैं । सीटों में तैंतीस फीसदी आरक्षण से यह अवश्य होगा कि महिलाओं की सहभागिता बढेगी लेकिन सवाल यह है कि सभी भारतीय नारियों को इसका समुचित लाभ मिल सकेगा ..? यह भविष्य के गर्भ मे है ।

इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में सूचना और संचार क्रान्ति अभूतपूर्व रूप में सामने आयी है । महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार हुआ है पर उनके साथ हो रहे भेदभाव को नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता । हमारे समाज में लिंगानुपात को ले कर कितनी भयावह स्थिति सामने है ? लिंग परीक्षण करा कर गर्भपात कराना केवल इसलिये कि मुझे लड़की नहीं चाहिये । यह कहां तक उचित है ? यौन उत्पीड़न जैसे हादसों ने जनसामान्य के मनोबल को हिला कर रख दिया है ।

आज भी ऐसा तबका समाज में विद्यमान है जहां महिलाओं से भेदभाव हो रहा है । समाज में उन्हें उचित स्थान प्राप्त नहीं हो पा रहा है । निगाह उधर भी जानी चाहिये । विधेयक के पास हो जाने से सक्रिय महिलाओं को लाभ मिलना स्वाभाविक है पर उनका क्या होगा जो सामान्य से नीचे की जिन्दगी में गुजर बसर कर रही हैं । उनमें यह आत्मविश्वास आ सकेगा कि मैं भी अब उच्च पदों पर आसीन हो सकूंगी?

सरकार का कदम सार्थक है लेकिन सरकारी प्रयासों मात्र से ही अपेक्षित परिणाम की आशा करना जायज नहीं ,अपितु उस आदर्श सामाजिक स्थिति का निर्माण करना आवश्यक होगा जिससे यथोचित भागीदारी को मूर्त रूप दिया जा सके ।

चित्र : http://naipirhi.blogspot.com से साभार .

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