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Sunday, August 30, 2009

मानव अधिकार

           मानव एक व्यक्तिगत सत्ता का स्वामी है। नि:सन्देह वह सामाजिक प्राणी भी है। उसके अधिकारों को दबाया नहीं जा सकता। भारतीय सन्दर्भों में मानवाधिकारों की चर्चा पहले से रही है लेकिन मूर्त रूप में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम-१९९३ के प्रभावी होने के बाद हुआ। वर्ल्ड कान्फ्रेंस आफ ह्युमन राइट्स -१९९३में हुई घोषणा
में कहा गया है-  सभी मानव अधिकार व्यक्ति में गरिमा और अन्तर्निहित योग्यता से लिए गये हैं। डी.डी.बसु के अनुसार- मानवाधिकार ऐसे न्यूनतम अधिकार हैं जो किसी व्यक्ति को मानव परिवार हैसियत से राज्य या किसी सार्वजनिक सत्ता के समक्ष प्राप्त हो। इनकी संकल्पना व्यापक है,इसे निश्चित दायरे में समेटा नहीं जा सकता। ये अधिकार अदेय हैं। इनकी रक्षा का दायित्व सभी को है।
          मनुष्य की ओर से उनकी अधिकारों के सन्दर्भ में संचेतना ने राज्य को संरक्षण के प्रति जागरूक बना दिया है। मानव को उनकी आवश्यकता के परिणामस्वरूप अपमान से संरक्षित किया जाना चाहिए। ऐसे अधिकारों के सन्दर्भ मे यह कहना उचित है कि मानवाधिकारों की इच्छा केवल संगठित समुदाय अर्थात राज्य में ही कर सकता है। जहां समाजिक व्यवस्था अस्तित्व में हो। कोई भी व्यक्ति अराजक स्थिति में
मानवाधिकारों के संरक्षण की कल्पना भी नहीं कर सकता।


                                                                                           क्रमश:....... अगली प्रविष्टि में।                   

Tuesday, August 25, 2009

सूचना का अधिकार : समस्यायें व समाधान

आज विश्व सूचना और संचार क्रान्ति के दौर से गुजर रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी ने सम्पूर्ण विश्व को एक विश्व गाँव में परिवर्तित कर दिया है। इसका किस हद तक प्रजातांत्रिक प्रणाली में उपयोग हो पाया है ? प्रजातांत्रिक प्रणाली में जनसूचना अधिकार की महत्ता किस हद तक है, यह अध्ययन का विषय है। सूचना के अधिकार की औचित्यपूर्णता के सम्बन्ध में ‘हेराल्ड जे0 लास्की और कर्ट आइनजर’ ने बताया है -

‘‘जिन लोगों को सही सूचनायें नहीं प्राप्त नहीं हो रहीं हैं उनकी आजादी असुरक्षित है। उसे आज नहीं तो कल समाप्त हो ही जाना है। ‘सत्य’ किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी थाती होता है जो लोग, जो संस्थायें उसे दबाने उसे छिपाने का प्रयास करती हैं अथवा उसके प्रकाश में आ जाने से डरती हैं, ध्वस्त और नष्ट हो जाना ही उनकी नियति है।’’

जनसूचना अधिकार से तात्पर्य सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन योग्य सूचनाएं प्राप्त करने से है जो किसी लोक प्राधिकारी द्वारा उसके नियंत्रण क्षेत्र से प्राप्त किया जा सकता है। भारत में सूचना अधिकार अधिनियम 11 मई, 2005 को पारित हुआ और उसके 121 दिन बाद 12 अक्टूबर, 2005 को जम्मू काष्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में लागू कर दिया गया। अधिनियम की धारा 2(1) के अनुसार आम नागरिकों को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त है -

    1    किसी दस्तावेज, पाण्डुलिपि या अभिलेखों का निरीक्षण।
    2    किसी दस्तावेज या अभिलेखों के नोट्स संक्षेपण या सत्यापित प्रतियां प्राप्त करना।
    3    किसी वस्तु का प्रमाणित नमूना प्राप्त करना।
    4    जहां सूचना कम्प्यूटर या किसी अन्य माध्यम में हो तो उसे फ्लापी, सीडी, टेप, विडियो कैसेट आदि रूप में प्राप्त करना।इनमें रिकार्ड,दस्तावेज, ज्ञापन, आदेष, लाग-बुक, अनुबन्ध, रिपोर्ट, पत्रक, नमूना,प्रतिरूप, इलेक्ट्रानिक रूप में डाटा और किसी निजी संस्था से सम्बन्धित जानकारी शामिल है।

यह अधिकार भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में अनु0 19 के 1 (क) के अधीन भाषण व अभिव्यक्ति से जुड़ा हुआ है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948) के अनु0 19 में ‘मत रखने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर दिया गया है। साथ ही नागरिक और राजनैतिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा 1966 के अनु0 19 में भी मत रखने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख है। भारतीय संविधान के अनु0 21 में स्पष्ट शब्दों में लिखा है-

‘‘किसी व्यक्ति को उस के प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है अन्यथा नहीं। तात्पर्य यह कि सूचना प्राप्ति के अधिकार को भारतीय संविधान के दो मौलिक अधिकार अनु0 19 (1) तथा अनु0 21 नागरिकों को दो मौलिक अधिकार उपलब्ध कराते हैं। कुछ ऐसी सूचनायें हैं जिन्हें प्राप्त करने से रोक है। सूचना के अधिकार अधिनियम के अनु0 8 (1) के अनुसार -

    1    जिस सूचना को सार्वजनिक करने से भारत की सम्प्रभुता, अखंडता, सुरक्षा, रणनीति सम्बन्धी हितों, वैज्ञानिक हितों, आर्थिक हितों या विदेशों के सम्बन्धों पर प्रतिकूल असर पड़ता हो या किसी अपराध को करने को उकसावा मिलता हो।
    2    जिस सूचना को प्रकट करने पर अदालत ने रोक लगा रखी हो या जिसे सार्वजनिक करने से अदालत की अवमानना होती हो।
    3    सूचना जिससे किसी तीसरे पक्ष की स्पर्धात्मक क्षति हो, यदि सक्षम अधिकारी संतुष्ट नहीं है कि सूचना देना व्यापक जनहित में है।
    4    वह सूचना जिससे किसी व्यक्ति का जीवन या सुरक्षा खतरे में पड़े या उस स्रोत की जानकारी मिले जिसने कानून व्यवस्था या सुरक्षा के लिये गोपनीयता से जानकारी या सहायता दी है।
    5    सूचना जिससे अपराधी की जाँच, धरपकड़ या उसे सजा देने पर विपरीत प्रभाव पड़े।
    6    मंत्रिमण्डल के ऐसे कागज-पत्र, जिनपर मंत्रियों, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श की टिप्पणियों का रिकार्ड शामिल है।
    7    जिस सूचना को सार्वजनिक करना न तो लोक हित के लिये जरूरी है और न जिससे सार्वजनिक मकसद
पूरा होता है और जिससे किसी व्यक्ति के निजी जीवन और एकान्त के अधिकार पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
    8    ऐसी सूचना जिसका सार्वजनिक किया जाना भले ही लोक हित में हो मगर जिसे जाहिर करने से संरक्षितों को ज्यादा नुकसान होता हो।

इन सबके बावजूद सार्वजनिक प्राधिकरण सूचना प्रदान करा सकता है यदि वह संतुष्ट है कि सूचना प्रदान करने से होने वाला जनहित उससे होने वाली क्षति से अधिक है।(अनु08(2)

समस्यायें -

सवाल यह है कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के लागू हो जाने के पष्चात इसके क्रियान्वयन में आ रही अड़चनों का सामना किस प्रकार किया जाय। प्रष्न का विषय है, यदि आप सूचना हासिल करके सम्बद्ध अधिकारियों को प्रस्तुत कर दें इसके बाद भी वह निष्क्रियता से पेष आये तो आम नागरिक क्या कर सकता है? इसके लिये सम्बन्धित अधिकारियों को जनता के प्रति उत्तरदायी होना पड़ेगा। जब जनता सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत दस्तावेज हासिल करके पारदर्शिता की माँग करती है तो कार्यवाही करने से सम्बन्धित अधिकारी इंकार कर देते हैं। प्रथम दृष्ट्या किसी भी प्रकार से आप सूचना प्राप्त कर लें और आप के साथ इस प्रकार का व्यवहार हो यह कहाँ तक उचित है? क्योंकि जनता को सूचना प्राप्त करने से पूर्व अत्यन्त तीव्र विरोध का सामना नौकरशाहों से करना पड़ता है। कुछ अधिकारियों का मानना है कि किसी फाइल नोटिंग को उजागर करने का प्रावधान अपने विचार व्यक्त करने में बाधक होगा, यह कहाँ तक उचित है? इस अधिनियम के लागू हो जाने के बाद अभी तक राज्य सरकारों ने अपनी प्रतिबद्धता और उत्साह का परिचय नहीं दिया है। सूचना के अधिकार की जानकारी केवल प्रबुद्ध वर्ग तक सीमित रह गयी है। बी0पी0एल0 श्रेणी के लोगों को ऐसी व्यवस्था दी गयी है कि वह निःषुल्क सूचना पाने के हकदार हैं पर क्या उनमें इस अधिकार के प्रति जागरुकता है? वे नौकरषाही से बच कर रहना जानते हैं क्योंकि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की गड़बड़ियों का षिकार होना शायद उनकी नियति है, ऐसा वह मानते हैं। यह आवश्यक नहीं कि मागे जाने पर स्पष्ट सूचना प्राप्त ही हो क्योंकि सरकारी कार्य व्यापार की जानकारी इन्हें भलीभाँति नहीं होती जिसका कारण इस अधिकार के उपयोग में समझ की कमी है।

सूचना के अधिकार का कानून लागू हो जाने के पश्चात इसकी प्रथम चुनौती शासन-प्रषासन में जनता तक सूचना को सुचारु रूप से उपलब्ध कराने की है जिसमें आला अधिकारियो से लेकर निचले कर्मचारी भी अपनी भूमिका पहचान सकें। इसके अन्य अवरोधों में राजनीतिक स्तरों पर उदासीनता और इन अधिकारों के प्रति जड़ता है। यह सच है कि केवल शीर्ष विधायक से सांसद के स्तर पर पक्ष एवं प्रतिपक्ष के जनप्रतिनिधियों द्वारा सूचना के अधिकार की लड़ाई को आत्मसात नहीं किया जायेगा तब तक इसे सफलतापूर्वक लागू करना असंभव है।

नागरिक किसी कार्यालय में जाकर कोई जानकारी या सरकारी दस्तावेज की माँग करे तो उसे औपचारिकत पूरी करने के बाद भी आसानी से सूचना प्राप्त नहीं होती, यह सच है। इन्हें उपेक्षित होना पड़ता है। जब तक जानकारी प्रदान करने की समुचित प्रणाली का विकास नहीं किया जायेगा तब तक यह प्रावधान मूर्त रूप में नहीं हो सकेगा। आज लोकतंत्र का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार में यह सबसे बड़ी खामी है कि उसने लोकतंत्र मंे लोक की सहभागिता को उचित स्थान नहीं दिया है। जिसका परिणाम है कि आम आदमी में सरकारी कार्यों के प्रति उदासीनता रहती है। तात्पर्य यह है कि सूचना का अधिकार जनता का अधिकार है और जबतक अपने इस अधिकार का प्रयोग जनता बखूबी नहीं करेगी तबतक इसकी सार्थकता सिद्ध न हो सकेगी।


समाधान -

सूचना के अधिकार के समुचित प्रयोग से ही शासन एवं निजी क्षेत्रों में से सूचना प्राप्त कर हो रही खामियों को उजागर कर उन्हें दूर किया जा सकेगा। इसके लिये कुछ आवष्यक सुझाव इस प्रकार से हैं -

1. जनता के जीवन एवं उनके विकास कार्यक्रम की सूचना हर संभव प्रयास करके प्रसारित की जाय।
2. ऐसा अभियान चलाया जाय जिससे कि हर विभाग के अधिकारी सूचना प्रदान करने में कोताही न करें।
3. सूचना प्राप्त करने के लिये किसी कठिन प्रक्रिया का सामना न करना पड़े और आसानी से सूचना प्राप्त हो सके।
4. सूचना समय से उपलब्ध न कराने वाले अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाय जिससे कि अन्य अधिकारियों को सबक मिल सके।
5. ई-शासन का सपना साकार हो जिसके लिये सूचना तकनीक से मुफीद और कोई रास्ता नहीं हो सकता क्योंकि इसके इस्तेमाल से ही शासन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को स्थान मिल सकेगा। ऐसा तभी संभव है जब शासन की सभी जानकारी जो लोकहित में हो, इण्टरनेट पर उपलब्ध हो।
6. इसे और असरदार बनाने के लिये यह आवष्यक है कि हर स्तर पर इसकी अनिवार्यता को स्थान मिले जिससे कि जनता को आसानी से सहभागी शासन में भूमिका प्राप्त हो सके।
7. सरकार में जनसहभागिता को स्थान प्राप्त हो।
8.शासन-तंत्र अपने कायों के प्रति पारदर्शी हो।
9. सूचना के अधिकार से प्रशासन में हो रहे भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सकता है। क्योंकि गोपनीयता और भ्रष्टाचार में बड़ा ही ताल-मेल होता है, जिसका नाम मिटाना अत्यन्त आवष्यक है।
10. जनता मेम जानकारी माँगने और उसके प्रयोग करने का स्वभाव विकसित करना होगा।
11. जब तक सूचना पाने के अभियान पर बल नहीं दिया जायेगा तब तक इसका समुचित लाभ न मिल सकेगा।

स्पष्ट है कि सूचना के अधिकार को अभी अनेक पड़ाव से होकर गुजरना है। जबतक इसके सिद्धान्त और व्यवहार में समन्वय नहीं देखने को मिलेगा तब तक इसकी यथोचित सार्थकता सिद्ध नहीं हो सकेगी।

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