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Thursday, September 24, 2009

हां ! सेलरी चली गयी चन्दे में .....!

हां ! सेलरी चली गयी चन्दे में । बहुत ही अजीब महसूस होता है । तरह तरह के लोग होते हैं ये चन्दे वाले । न जाने कौन सा पाठ पढ़ कर चन्दा काटने की कारगुजारी शुरू कर देते हैं । इनका बाजार हमेशा गर्म होता है । कभी भी खाली नहीं रहते । इनका मौसम सदाबहार है । आ जाते हैं सड़क पर । अपने लाव लश्कर के साथ अंजाम देने अपने काम को । बड़ी बारीकी से पेश आते हैं । शुरुआत होती है साल के आरंभ में वसंत पंचमी से फिर राम नवमी,विश्वकर्मा पूजा, दुर्गा पूजा, काली पूजा, गणेश पूजा , । ये तो धार्मिक माध्यम हैं । और भी मायने हैं जैसे - गरीब की बेटी की शादी का बहाना,होली मिलन, सांस्कृतिक आयोजन, समाज कार्य, लोक हित, सम्मान समारोह आदि ।

क्या कहते हैं -- अरे साब जी ! इतना तो ठेले वाले देने में अपनी तौहीनी समझते हैं । आप तो गाड़ी घोड़े से हैं । इन चन्दे लेने वालों को कौन समझाये कि ठेले और खोमचे वालों का दायरा अपने सीमित दायरे में होता है । यहां तो घर से निकलो सड़क पर हर चार पांच किमी पर रोकने वाले मिल जाते हैं । सबको अपनी आस्थानुसार सन्तुष्ट करना होता हैं । सड़क पर चलना जो है(आशय समझ सकते हैं)।

कभी कभी विवेक साथ नहीं देता कि इनके साथ कौन सा बर्ताव हो । अरे अगर उत्सव संपादित करना ही है अपनी क्षमतानुसार ही करें क्या जरूरत है कि शक्ति प्रदर्शन के लिये अन्य राहगीर पर पिल पडे़ । यह भी कोरा सच है कि प्राप्त धनराशि का सार्थक उपयोग हो ,ऐसा प्रतीत नहीं होता । और भी कहते हैं -- इतना कम न दीजिएगा कि हम लोगों को कुछ कहना पडे़ । अपनी मर्यादा का ध्यान अवश्य करियेगा । यहां तक कि पिछली रसीद तक दिखाने को तैयार हो जाते हैं ।

अभी मंहगाई ने क्या कम बजट बिगाड़ा था । कितने सामंजस्य के बाद सुविधाओं को सीमित करने की बात ही हो रही थी कि मर्यादा और आस्था के साथ सामंजस्य का कार्य व्यापार ने तो निचोड़ के रख दिया ...?

5 comments:

  1. मंहगाई ने तो आफ़त मचा कर रखा है..बढ़िया लेख.. बधाई!!

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  2. हेमंत जी तकलीफ तो तब और बढ़ जाती है जब आप सुबह से चन्दा दे दे थक चुके होते है और किसी अच्छे होटल में खाना खाने जाते है तो वहा देखते है कि आप के चंदे का पैसा वहा पर वही चन्दा लेने वाले ही बड़े मौज से उड़ा रहे होगे

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  3. हेमंत कुमार जी एक दम सही कहा आपने. मेरा एक लघु लेख खबरिया चॅनल रचनाकार में व् एक अन्य बस के हादसों का शहर हिंदुस्तान का दर्द में प्रकाशित हुआ है उसे भी पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया दें.मेरा ब्लॉग भी देखें rachanaravindra.blogspot.com

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  4. chande ke pese ka sahi upayog nahi hota hai....

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  5. चन्दे के पीछे का मनोविज्ञान तो समझो मित्र ! और सामाजिक आर्थिक संगति विसंगति का भी तो खयाल करो !
    यह नवरात्रि का उत्सव केवल देवी की पूजा के अनुष्ठान का ही दिवस नहीं है, न जाने कितने अतृप्त, बुभुक्षित लोगों की वार्षिक तृप्ति का भी दिवस है ।
    जो रोकते हैं राह में, जो जबरदस्ती काट देते हैं रसीद, जो उलाहना देते हैं वास्ता देते हैं तुम्हारी हैसियत का, जरा उनके पीछे छिपी आकंठ अकुलाहट का तो खयाल करो । देना ही पड़ेगा । न देकर आप स्वयं में असंतुष्ट हो जाया करेंगे ।

    प्रविष्टि ने एक छोटी पर महत्वपूर्ण बात उठायी है । आभार ।

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टिप्पणियाँ दे । हौसला बढ़ेगा । आभार ।

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