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Monday, September 21, 2009

विचार क्रान्ति के माध्यम से ...!

आज कितना आसान हो गया है इस भौतिकवादी दुनियां में अपनी संवेदना को ढूढना । रोज सुबह होते ही इस फिराक में कि कब फुरसत मिले और आ जाऊं उस जगह जहां ऐसी दुनिया बसती है जहां कोई अपने पराये का भेद नहीं । बस विचार क्रान्ति के माध्यम से ही हार्दिक और मानसिक शान्ति की खोज में तल्लीनता से एक कुनबा लगा है । जो बिना किसी भेदभाव के अपने विचारों से सबका उत्साहवर्धन करते हैं । किसी भी प्रकार से प्राप्त जानकारी यदि प्रासंगिक है उसे अवश्य ही ब्लाग पर डालते हैं जिससे सभी ब्लागर इसका समुचित लाभ उठाकर अपनी जिज्ञासा को शान्त कर सकें ।

यथार्थ जीवन में दिख रहा भ्रष्टाचार देख कर मन ही मन उद्वेलित हो उठता हूं । सच है कि यहां कोई अपना पराया नहीं पर स्वार्थ के वशीभूत हो अपनेपन का स्वांग रचना और काम निकल जाने के बाद आसानी से अलग कर देना जैसे आम बात हो गयी है ।जब देखो तब अपनी डफली बजा बजा खुद को सिद्ध करने की बात होती रहती है ।

सामान्य जीवन में दिख रहा उहापोह, ऊंच नीच का भाव,ईर्श्या , जलन, पूर्वाग्रह और भी बहुत कुछ । ये सब क्या मनः स्थिति को अवसाद से भरने के लिये कम है । सारे सवालों का जवाब दे पाना आसान नहीं । जाय तो जाय कहां आदमी । दहलीज से कदम बाहर ज्यों ही निकलते हैं ,सामना इन्हीं लोगों से होना है कदम कदम पर । खुद को क्षमतानुसार अभिव्यक्त करने का कोई स्थान ही नहीं । कम से कम संयोग से ही सही जितना समय मिल जाय उतना ही मनोदशा को स्वस्थ करने के लिए ब्लागिंग मंच तो है । यहां ऐसी दुनिया है जहां निरपेक्ष भाव से अभिव्यक्ति को स्थान मिल रहा है । सीधे तौर पर कोई पूर्वाग्रह नहीं दिखता ।

संवेदना और विचारों के पुष्ट होने का बेहतर मार्ग है ब्लागिंग । बेहद जरूरी है यह । शायद इसके बारे में जिसने इसे बनाया इतना सफल होने की स्वस्थ कल्पना उसने भी न की होगी । यह वृक्ष आज इतना विशाल फलक वाला होगा जिसमें हम सब अपने विचारों को प्लेटफार्म दे सकेंगे ...! और इतना फूलेगा फलेगा.... ।

5 comments:

  1. लगे रहो हेमंत. इस वैचारिक क्रांति में अक्षरश: का भी काफी योगदान जरूर होगा.

    सस्नेह -- शास्त्री

    हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
    http://www.Sarathi.info

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  2. bilkul apane sahi likha hai .......ek sakararatmak post .......badhiya

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  3. ब्लॉगिंग मनोदशा को स्वस्थ करने का ही माध्यम भर नहीं है... गति है, सुगति है अभिव्यक्ति के अनवरत चलने वाले प्रवाह का । जो घट रहा है इस वक्त अभिव्यक्ति संसार में उसकी झलक है ब्लॉगिंग ।

    नई अभिव्यक्ति का सार्थक चितेरा ।

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  4. बिल्कुल सही विश्लेषण!!

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  5. धन्य हैं बंधु। विचारों और क्रियाकलापों को वहीं दिशा मिले जो मन मे है।

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टिप्पणियाँ दे । हौसला बढ़ेगा । आभार ।

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