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Sunday, September 20, 2009

वाद विवाद को गति देने से......

हर विचार ,आन्दोलन ,अवधारणाओं की अपनी अपनी ऐतिहासिक स्थिति रही है । विचारों को उचित स्थान तभी मिल पाता है जब उसे सामाजिक स्वीकृति प्राप्त हो । बिना सामाजिक स्वीकृति के आपके विचारों को वैधता नही मिलती ।किसी को कोई अधिकार नहीं कि वह किसी की सीमा का अनायास ही अतिक्रमण करते दिखें । सबका विचार अपनी सीमा में स्वतंत्र हैं ।

किसी पूर्वाग्रह के वशीभूत कब तक जनता कॊ अपनी सीमाओं रहने के लिये कहना उचित होगा । जब तक अपनी पहचान स्थायित्व की ओर बढ़ते हुए न दिखेंगे कोई भी आपकी ओर बढ़ता न दिखेगा । वाद विवाद को गति देने से अनेक ऐसे गड़े मुद्दे बंद बोतल से निकले हुए जिन्न की तरह सामने आ खड़ा होगा और मामला सुलझने की बजाय उलझना शुरु हो जायगा ।

अब बहुत हो चुका । आवश्यकता इस बात की है एक बार फिर अपने उस मोड़ से सबक ले बढ़ें उस ओर जिसके निमित्त हम कृतसंकल्पित हो चले थे । अन्यथा हमारा उद्देश्य असफल हो जायेगा । हम हिन्दी सेवक हैं । हमारा उद्देश्य हिन्दी सेवा ही है न कि विवादों को जन्म देना । ये विवाद हमें जब अपने सींखचों मे जकड़ लेंगे । इस नागफांस से बच निकलना बहुत ही कठिन होगा ।

विवादों को तूल देने से घात प्रतिघात , खेमेबाजी , छीटाकशी आदि को बढा़वा मिलता है । ऐसा नहीं होना चाहिए । हम सब हिन्दी सेवी हैं हमारा काम हिन्दी की मनोयोग से सेवा करना ही उचित है और साथ ही हर उस व्यक्ति के मार्ग में रचनाधर्मिता के संदंर्भ में आ रहे रोड़ों को येन केन प्रकारेण हटाना है ।

हिन्दी सेवा ! भारत सेवा !

6 comments:

  1. ऐसे सुलझे स्वरों की आवश्यकता है।
    बेसुर गर्जन तर्जन मर्दन नर्तन ..बहुत हो चुके।

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  2. हिन्दी की सेवा अननंतर न हो - इसकी आश्वस्ति तो हमारा अंतकरण ही देगा न!
    हिन्दी सेवा भारत सेवा का शुभ संकल्प चहुँदिस फैले ! मंगलकामना । आभार ।

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  3. हर उस व्यक्ति के मार्ग में रचनाधर्मिता के संदंर्भ में आ रहे रोड़ों को येन केन प्रकारेण हटाना है .nice

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  4. आजकल गली कूंचों में चल रहे अंगरेजी माध्यम के स्कूल के बच्चों को देवनागरी के स्वर और व्यंजन तथा गिनती क्रम से याद करा देना भी हिन्दी सेवा कहा जाएगा.

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  5. ... सिर्फ "रचनाधर्मिता" से हिंदी की सेवा बहुत हो चुकी ........आर्थिक पक्ष का मजबूत होना अत्यंत आवश्यक है ......मार्केट स्कोप रहना चाहिए .......और निश्चित ही विगत वर्षो में बाजार में हिंदी की माग बहुत बढी है .....मल्टीनेशनल कंपनिया, जिन्हें भारत में व्यापार करना है, समझ गयी है की भारत में अब हिंदी के बिना काम नही चलेगा .........

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  6. पते की बात -हम अनुसरण करेगें !

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टिप्पणियाँ दे । हौसला बढ़ेगा । आभार ।

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