आज समूचा विश्व पर्यावरण संकट से जूझ रहा है । 1970 के दशक में पर्यावरणीय विचारात्मक आन्दोलन का प्रारंभ माना जाता है । इसको लेकर हो रहे राजनीति को हरित राजनीति की संज्ञा दी गयी । पर्यावरणवाद के समर्थन में यह कहा गया कि यह विरासत की वस्तु न हो कर भावी पीढ़ी के लिये धरोहर है । पर्यावरण के प्रति जागरूक होना हमारा नैतिक कर्तव्य है । इससे मुह मोड़ के केवल आप खुद को धोखा दे सकते हैं ।
इसकी रक्षा के प्रति हमारा कर्तव्य है कि हम सजग हों । आर्थिक विकास की होड़ में हमने पर्यावरण को जितनी मात्रा में क्षति पहुंचायी है , प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन किया है ठीक उसके समानान्तर संरक्षण के लिये किस हद तक प्रयास किया है । खनिज पदार्थों का नियोजन किये बिना अन्धाधुंध खनन के कारण जो अम्ल बहाये गये हैं जिन्होंने जल स्रोतों को पूर्णतया विषाक्त करके रख दिया है ।
नदियां यूं ही नाले में परिवर्तित हो रही हैं । कल कारखानों की चिमनियों से और मोटर गाड़ियों के धुओं से निकले हानिकारक रासायनिक पदार्थों ने जितना वायु प्रदूषण किया है वह जीव जन्तुओं और पेड़ पौधों के स्वास्थ्य के लिये कम हानिकारक है । उद्योगों से पैदा होने वाले कचरे और न्युक्लियर पावर के प्रयोग से पैदा होने वाले रेडियोधर्मी रिसाव से क्या धरती रहने योग्य बच सकेगी ?
पर्यावरणवाद ने हमेंशा से आर्थिक संवृद्धि पर मानवीय मौलिकताओं को वरीयता दी है । जिससे कि सबका ध्यान इस ओर आकृष्ट हो ही साथ ही ऐसा कार्यक्रम बनाकर निरन्तर प्रयास जिससे सरकार काभी ध्यान आकृष्ट हो सके ।
एक वाक्य़ में कहें तो मनुष्य की आवश्यकताओं की सीमा है लेकिन लालच की नहीं। समूची समस्या लिप्सा की ही देन है।
ReplyDeleteअच्छा संकेत है कि लोग अब सोचने लगे हैं।
क्या करेगे सरकार और सरकारे लोग तो जेब भरने मेंलगे है तो इसका ध्यान कौन देगा ?
ReplyDeleteपर्यावरण का ध्यान तो हम सबको रखना चाहिए।
ReplyDeleteनेताओ को इसकी चिंता नही है अब जनता को ही चिंता करनी होगी
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