महिला आरक्षण विधेयक ने पहली बाधा अवश्य पार कर ली है किन्तु इसे अभी अनेक पड़ाव पार करने बाकी हैं । सीटों में तैंतीस फीसदी आरक्षण से यह अवश्य होगा कि महिलाओं की सहभागिता बढेगी लेकिन सवाल यह है कि सभी भारतीय नारियों को इसका समुचित लाभ मिल सकेगा ..? यह भविष्य के गर्भ मे है ।
इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में सूचना और संचार क्रान्ति अभूतपूर्व रूप में सामने आयी है । महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार हुआ है पर उनके साथ हो रहे भेदभाव को नजर अन्दाज नहीं किया जा सकता । हमारे समाज में लिंगानुपात को ले कर कितनी भयावह स्थिति सामने है ? लिंग परीक्षण करा कर गर्भपात कराना केवल इसलिये कि मुझे लड़की नहीं चाहिये । यह कहां तक उचित है ? यौन उत्पीड़न जैसे हादसों ने जनसामान्य के मनोबल को हिला कर रख दिया है ।
आज भी ऐसा तबका समाज में विद्यमान है जहां महिलाओं से भेदभाव हो रहा है । समाज में उन्हें उचित स्थान प्राप्त नहीं हो पा रहा है । निगाह उधर भी जानी चाहिये । विधेयक के पास हो जाने से सक्रिय महिलाओं को लाभ मिलना स्वाभाविक है पर उनका क्या होगा जो सामान्य से नीचे की जिन्दगी में गुजर बसर कर रही हैं । उनमें यह आत्मविश्वास आ सकेगा कि मैं भी अब उच्च पदों पर आसीन हो सकूंगी?
सरकार का कदम सार्थक है लेकिन सरकारी प्रयासों मात्र से ही अपेक्षित परिणाम की आशा करना जायज नहीं ,अपितु उस आदर्श सामाजिक स्थिति का निर्माण करना आवश्यक होगा जिससे यथोचित भागीदारी को मूर्त रूप दिया जा सके ।
चित्र : http://naipirhi.blogspot.com से साभार .